मरा हूँ जब से मैं उस पर, नहीं डरता हूँ मरने से वो यूँ इठला के है चलती, गिरे ज्यूँ नीर झरने से,धड़कती हो मेरी सांसो में तुम ही रागनी बनकर , उठूँगा अब तो मैं जानम, तुम्हें पाकर ही धरने से
” डॉ रसिक गुप्ता “
मरा हूँ जब से मैं उस पर, नहीं डरता हूँ मरने से वो यूँ इठला के है चलती, गिरे ज्यूँ नीर झरने से,धड़कती हो मेरी सांसो में तुम ही रागनी बनकर , उठूँगा अब तो मैं जानम, तुम्हें पाकर ही धरने से
” डॉ रसिक गुप्ता “